15-04-71  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

त्रिमूर्ति बाप के बच्चों का त्रिमूर्ति कर्त्तव्य

त्रिमूर्ति बाप के बच्चे आप सभी भी त्रिमूर्ति हो? त्रिमूर्ति बन तीनों कार्य करते हो? इस समय दो कर्त्तव्य करते हो वा तीन? कौनसा कर्त्तव्य करते हो? वा तीनों ही कर्त्तव्य साथ-साथ करते हो? त्रिमूर्ति तो बने हो ना। जैसे त्रिमूर्ति बने हो वैसे ही त्रिकालदर्शी भी बने हो? हर कर्म व हर संकल्प की जो उत्पत्ति होती है वह त्रिकालदर्शी बनकर फिर संकल्प को कर्म में लाते हो? सदैव तीनों ही कार्य साथ-साथ ज़रूर चलते हैं। क्योंकि अगर पुराने संस्कार वा स्वभाव वा व्यर्थ संकल्पों का विनाश ही नहीं करेंगे तो नई रचना कैसे होगी। और अगर नई रचना करते हो, उनकी पालना न करेंगे तो प्रैक्टिकल कैसे दिखाई देंगे। तो त्रिमूर्ति बाप के त्रिमूर्ति बच्चे तीनों ही कर्त्तव्य साथ-साथ कर रहे हो। विनाश करते हो विकर्मों अथवा व्यर्थ संकल्पों का। यह तो और भी अब तेजी से करना पड़े। सिर्फ अपने व्यर्थ संकल्प वा विकर्म भस्म नहीं करने हैं लेकिन तुम तो विश्व-कल्याणकारी हो। इसलिए सारे विश्व के विकर्मों का बोझ हल्का करना वा अनेक आत्माओं के व्यर्थ संकल्पों को मिटाना-यह शक्तियों का कर्त्तव्य है। तो वर्तमान समय यही विनाश का कर्त्तव्य और साथ- साथ नये शुद्ध संकल्पों की स्थापना का कर्त्तव्य-दोनों ही फुल फोर्स में चलना है। जैसे कोई बहुत तेज़ मशीनरी होती है तो एक सेकेण्ड में उस वस्तु का रूप, रंग, गुण, कर्त्तव्य आदि सब बदल जाता है। मशीनरी में पड़ा और बदली हुआ! ऐसे अभी यह विनाश और स्थापना की मशीनरी भी बहुत तेज होनी है। जैसे मशीनरी में पड़ते ही चीज का रूप-रंग बदल जाता है, ऐसे इस रूहानी मशीनरी में आप लोगों के सामने जो भी आत्मायें आयेंगी, आते ही उनके संकल्प, स्वरूप, गुण और कर्त्तव्य बदल जायेंगे। न सिर्फ आत्माओं के लेकिन 5 तत्वों के भी गुण और कर्त्तव्य बदलने वाले हैं। ऐसी मशीनरी अब प्रैक्टिकल में चलने वाली है। इसलिए बताया कि विनाश और स्थापना-दोनों कर्त्तव्य साथ-साथ चल रहा है। अभी और ही तेजी से चलने वाला है। जैसे महादानियों के पास सदैव भिखारियों की भीड़ लगी हुई होती है, वैसे आप सभी के पास भी भिखारियों की भीड़ लगने वाली है। आपके पास प्रदर्शनी में जब भीड़ होती है तो फिर क्या करते हो? क्यू-सिस्टम में शार्ट में सिर्फ संदेश देते हो। रचना की नॉलेज नहीं दे सकते हो, सिर्फ रचयिता बाप का परिचय और सन्देश दे सकते हो। वैसे ही जब भिखारियों की भीड़ होगी तो सिर्फ यही सन्देश देंगे। लेकिन वह एक सेकेण्ड का सन्देश पावरफुल होता है, जो वह सन्देश उन आत्माओं में संस्कार के रूप में समा जाता है। सर्व धर्म की आत्मायें भी यह भीख मांगने के लिए आयेंगी। कहते हैं ना कि क्राइस्ट भी बेगर रूप में है। तो धर्म-पितायें भी आप लोगों के सामने बेगर रूप में आयेंगे। उनको क्या भिक्षा देंगे? यही सन्देश। ऐसा पावरफुल सन्देश होगा जो इसी सन्देश के पावरफुल संस्कारों से धर्म स्थापन करने के निमित्त बनेंगे। वह संस्कार अविनाशी बन जायेंगे। क्योंकि आप लोगों के भी अन्तिम सम्पूर्ण स्टेज के समय अविनाशी संस्कार होते हैं। अभी संस्कार अविनाशी बना रहे हो। इसलिए अब जिन्हों को सन्देश देते हो और मेहनत करते हो, तो अभी वह सदाकाल के लिए नहीं रहता है। कुछ समय रहता है फिर ढीले हो जाते हैं। लेकिन अन्त के समय आप लोगों के संस्कार ही अविनाशी हो जाते हैं। तो अविनाशी संस्कारों की शक्ति होने के कारण उन्हों को भी ऐसी शिक्षा वा सन्देश देते हो जो उनके संस्कार अविनाशी बन जाते हैं। तो अभी पुरूषार्थ क्या करना पड़े? संस्कारों को पलटना तो है लेकिन अविनाशी की छाप लगाओ। जैसे गवर्नमेंट की मुहर लगती है ना, सील करते हैं जो कोई खोल नहीं सकता। ऐसी सील लगाओ जो माया आधा कल्प के लिए फिर खोल ही न सके। तो अविनाशी संस्कार बनाने का तीव्र पुरूषार्थ करना है। यह तब होगा जब मास्टर त्रिकालदर्शी बन संकल्प को कर्म में लायेंगे। जो भी संकल्प उत्पन्न होता है, संकल्प को ही चेक करो। मास्टर त्रिकालदर्शी की स्टेज पर हूँ? अगर उस स्टेज पर स्थित होकर कर्म करेंगे तो कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं होगा। विकर्म की तो बात ही नहीं है। अभी विकर्म के खाते से ऊपर आ गये हो। विकल्प भी खत्म तो विकर्म भी खत्म। अभी है व्यर्थ कर्म और व्यर्थ संकल्प की बात। इन व्यर्थ को बदलकर समर्थ संकल्प और समर्थ कार्य करना है। इसको कहते हैं सम्पूर्ण स्टेज। तो अब महादानी बने हो?

कितने प्रकार के दान करती हो? डबल दानी हो वा ट्रिपल या ट्रिपल से भी ज्यादा हो? (हरेक ने अपना विचार बताया) मुख्य तीन दान बताये। ज्ञान का दान भी करते हो, योग द्वारा शक्तियों का दान भी कर रहे हो और तीसरा दान है कर्म द्वारा गुणों का दान। तो एक है मन्सा का दान, दूसरा है वाचा का और तीसरा है कर्म द्वारा दान। मन्सा द्वारा सर्व शक्तियों का दान। वाणी द्वारा ज्ञान का दान, कर्म द्वारा सर्व गुणों का दान। तो सदैव जो दिन आरम्भ होता है उसमें पहले यह प्लैन बनाओ कि आज के दिन यह तीनों दान किस-किस रूप से करना है और फिर दिन समाप्त होने के बाद चेक करो कि - ‘‘हम महादानी बने? तीनों ही प्रकार का दान किया?’’ क्योंकि तीनों प्रकार के दान की अपनी-अपनी प्रारब्ध वा प्राप्ति है। जैसे भक्ति मार्ग में जो-जो जिस प्रकार का दान करता है उसको उस प्रकार की प्राप्ति होती है। ऐसे ही जो इस महान जीवन में जितना और जैसा दान करता है उतना और वैसा ही भविष्य बनता है। न सिर्फ भविष्य लेकिन प्रत्यक्ष फल भी मिलता है। अगर कोई वाणी का वा कर्म का दान नहीं करते हैं सिर्फ मन्सा का दान करते हैं, तो उनको प्रत्यक्षफल और मिलता है। अभी आप लोग कर्म फिलासाफी को अच्छी रीति जान गये हो ना। तीनों दान की प्राप्ति अपनी-अपनी है। जो तीनों ही दान करते हैं उनको तीनों ही फल प्रत्यक्ष रूप में मिलते हैं। आप कर्मों की गति को जानते हो ना। बताओ, मन्सा-दान का प्रत्यक्षफल क्या है? मन्सा महादानी बनने वाले को प्रत्यक्षफल यहीं प्राप्त होता है - एक तो वह अपनी मन्सा अर्थात् संकल्पों के ऊपर एक सेकेण्ड में विजयी बनता है अर्थात् संकल्पों के ऊपर विजयी बनने की शक्ति प्राप्त होती है। और, कितना भी कोई चंचल संकल्प वाला हो यानी एक सेकेण्ड भी उनका मन एक संकल्प में न टिक सके - ऐसे चंचल संकल्प वाले को भी अपनी विजय की शक्ति में टेम्प्रेरी टाइम के लिए शांत व चंचल से अचल बना देंगे। जैसे कोई भी दुःख में तड़पते हुए को इन्जेक्शन द्वारा बेहोश कर देते हैं, उनके दु:ख की चंचलता खत्म हो जाती है। ऐसे ही मन्सा द्वारा महादानी बनने वाला अपनी दृष्टि, वृत्ति और स्मृति की शक्ति से ऐसे ही उनको शान्ति का अनुभवी बना सकते हैं लेकिन टेम्प्रेरी टाइम के लिए। क्योंकि उनका अपना पुरूषार्थ नहीं होता है। लेकिन महादानी की शक्ति के प्रभाव से थोड़े समय के लिए वह अनुभव कर सकता है। तो जो मन्सा के महादानी होंगे उनके संकल्प में इतनी शक्ति होती है जो संकल्प किया उसकी सिद्धि मिली। तो मन्सा-महादानी संकल्पों की सिद्धि को प्राप्त करने वाला बन जाता है। जहाँ संकल्प को चाहे वहाँ संकल्पों को टिका सकते हैं। संकल्प के वश नहीं होंगे लेकिन संकल्प उनके वश होता है। जो संकल्पों की रचना रचे, वह रच सकता है। जब संकल्प को विनाश करना चाहे तो विनाश कर सकते हैं। तो ऐसे महादानी में संकल्पों के रचने, संकल्पों को विनाश करने और संकल्पों की पालना करने की तीनों ही शक्ति होती है। तो यह है मन्सा का महादान। ऐसे ही समझो मास्टर सर्वशक्तिवान का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाई देता है। समझा?

वह हो गया मास्टर सर्वशक्तिमान और जो वाचा के महादानी हैं उनको क्या मिलता है? वह हैं मास्टर नालेज़फुल। उनके एक-एक शब्द की बहुत वैल्यु होती है। एक रत्न की वैल्यु अनेक रत्नों से अधिक होती है। वाचा द्वारा तुम रत्नों का दान करते हो ना। तो जो ज्ञान-रत्नों का दान करते हैं उनका एक-एक रत्न इतना वैल्युएबल हो जाता है जो उनके एक-एक वचन सुनने के लिए अनेक आत्माएं प्यासी होती हैं। अनेक प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने वाला एक वचन बन जाता है। मास्टर नॉलेजफुल, वैल्युएबल और तीसरा फिर सेन्सीबल बन जाता है। उनके एक-एक शब्द में सेन्स भरा हुआ होता है। सेन्स अर्थात् सार के बिना कोई शब्द नहीं होता। जब कोई ऐसे सेन्स से शब्द बोलता है तो कहते हैं ना - यह तो बहुत सेन्सीबल है। वाणी द्वारा सेन्स का मालूम पड़ता है। तो दोनों सेन्सीबल भी बन जाते हैं। यह तो हुआ लक्षण। प्राप्ति क्या होती है? वाचा के दानी बनने वाले को विशेष प्राप्ति एक तो खुशी रहती है, क्योंकि धन को देख हर्षित होता है ना। और दूसरा वह कभी भी असंतुष्ट नहीं होंगे। क्योंकि खजाना भरपूर होने के कारण, कोई अप्राप्त वस्तु न होने के कारण सदैव सन्तुष्ट और हर्षित रहेंगे। उनका एक-एक बोल तीर समान लगेगा। जिसको जो बोलेंगे उनको वह लग जायेगा। उनके बोल प्रभावशाली होते हैं। वाणी का दान करने से वाणी में बहुत गुण आ जाते हैं। अवस्था में सहज ही खुशी की प्राप्ति होगी। प्राप्ति करने का पुरूषार्थ नहीं करेंगे लेकिन स्वत: ही प्राप्त होगी। जैसे कोई खान से चीज निकलती है तो अखुट होती है ना। ऐसे ही अन्दर से खुशी स्वत: ही निकलती रहेगी। यह वरदान के रूप में प्राप्त होता है। खुशी के लिए पुरूषार्थ नहीं किया। पुरूषार्थ तो वाणी द्वारा दान करने का किया। प्राप्ति खुशी की हुई।

कर्मणा द्वारा गुणों का दान करने के कारण कौनसी मूर्त बन जायेंगे? फरिश्ता। कर्म अर्थात् गुणों का दान करने से उनकी चलन और चेहरा - दोनों ही फरिश्ते की तरह दिखाई देंगे। दोनों प्रकार की लाइट होगी अर्थात् प्रकाशमय भी और हल्कापन भी। जो भी कदम उठेगा वह हल्का। बोझ महसूस नहीं करेंगे। जैसे कोई शक्ति चला रही है। हर कर्म में मदद की महसूसता करेंगे। हर कर्म में सर्व द्वारा प्राप्त हुआ वरदान अनुभव करेंगे। दूसरे, हर कर्म द्वारा महादानी बनने वाला सर्व की आशीर्वाद के पात्र बनने के कारण सर्व वरदान की प्राप्ति अपने जीवन में अनुभव करेंगे। मेहनत से नहीं, लेकिन वरदान के रूप में। तो कर्म में दान करने वाला एक तो फरिश्ता रूप नज़र आयेगा, दूसरा सर्व वरदानमूर्त अपने को अनुभव करेगा। तो अपने को चेक करो - कोई भी दान करने में कमी तो नहीं करते हैं? तीनों दान करते हैं? तीनों का हिसाब किस-न-किस रूप से पूरा करना चाहिए। इसके लिए तरीके, चान्स ढूंढ़ो। ऐसे नहीं - चान्स मिले तो करेंगे। चान्स लेना है, न कि चान्स मिलेगा। ऐसे महादानी बनने से फिर लाइट और माइट का गोला नज़र आयेगा। आपके मस्तष्क से लाइट का गोला नज़र आयेगा और चलन से, वाणी से नॉलेज रूपी माइट का गोला नज़र आयेगा अर्थात् बीज नजर आयेगा। मास्टर बीजरूप हो ना। ऐसे लाइट और माइट का गोला नज़र आने वाले साक्षात् और साक्षात्कारमूर्त बन जायेंगे। समझा?

यहाँ इस हाल में ऐसा कोई चित्र है जिसमें लाइट और माइट के दोनों गोले हों? (कोई ने कहा श्री लक्ष्मी-नारायण का, कोई ने कहा ब्रह्मा का) देखो, चित्र को देखने से चेहरा ही जैसे बदल जाता है। तो आप लोग भी ऐसे चैतन्य चित्र बनो जो देखते ही सभी के चरित्र और नैन-चैन बदल जायें। ऐसा बनना है और बन भी रहे हो। वरदान भूमि में आना अर्थात् वरदान के अधिकारी बनना। जैसे यात्रा पर जाते हैं, क्यों जाते हैं? (पाप मिटाने) उस भूमि में यह विशेषता है तब तो जाते हैं। इस भूमि में फिर क्या विशेषता है? जो है ही वरदान भूमि, वहाँ वरदान तो प्राप्त है ही। अपने आप ही वरदान तो मिलेगा ना। मांगने की दरकार नहीं है। इसलिए आज से मांगना बंद। अपने को अधिकारी समझो। अच्छा!